जाने अपने शहर के बारे में / प्रिंस ऑफ वेल्स के महाराज बनने की खुशी का इजहार है मिंटो हॉल, उनके क्राउन से मिलता है इसका डिजाइन

1909 में बना मिंटो हॉल ब्रिटिश और भोपाल रियासत के अच्छे रिश्तों का प्रतीक तो है ही, यह उस समय के इंग्लैंड में चल रहे राजनीतिक परिदृश्य का प्रतिबिम्ब भी है। मिंटो हॉल शहर के दूसरे महलों से अलग क्यों और कैसे है, बता रही हैं हमीदिया कॉलेज में इतिहास की प्रोफेसर डॉ. रचना मिश्रा। 1909 में जनवरी की शुरुआत में भारत के वायसराय व गवर्नर जनरल लॉर्ड मिंटो ने भोपाल की बेगम को संदेश भिजवाया कि, वे भोपाल आना चाहते हैं।


बेगम ने उनके स्वागत की तैयारी जोरों से शुरू कर दी।  नवंबर 1909 में लॉर्ड मिंटो अपनी पत्नी के साथ भोपाल आए। उसी साल इंडियन कांउसिल एक्ट लागू हुआ था। इसके तहत ब्रिटिश राज्य ने रियासतों के साथ अच्छे संबंध स्थापित करने के लिए फैमिली जैसे रिलेशन रखने की शुरुआत की थी। पत्नी के साथ मिंटो का दौरा इसी एक्ट के तहत था।




  • प्रिंस ऑफ वेल्स जॉर्ज पंचम 1911 में अगले महाराज होंगे, इसकी घोषणा 1909 में हुई। जॉर्ज पंचम को खुश करने के लिए ही मिंटो हॉल का आकार जॉर्ज पंचम के मुकुट के आकार का रखा गया था।

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  • मिंटाे हॉल को बनने में 24 साल लगे। इसके लिए बहुत सारा मैटेरियल इंग्लैंड से मंगवाया गया, जिसमें रॉट आयरन की ढली हुई सीढ़ियां, फॉल्स सीलिंग थी। तीन लाख रुपयों का खर्च आया था। 

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  • बाद में, मिंटो हॉल भोपाल राज्य की सेना का मुख्यालय भी बना। 1946 में मिंटो हॉल में इंटर कॉलेज लगना शुरू हुआ, जिसका नाम बाद में बदल कर हमीदिया कॉलेज रख दिया गया। 


लाइव वायरस के साथ टेस्ट कंडक्ट करते हैं
डॉ. दीप्ति चौरसिया, एचओडी, वायरोलॉजी लैब के मुताबिक, लैब में सैंपल्स को टेस्ट करना एक लंबा प्रोसेस है। ट्रिपल लेयर में आए हर एक सैंपल को पहले बायोसेफ्टी कैबिनेट में ओपन करके जमाना होता है और इसकी बारीक स्टडी करनी होती है। हर रोज सभी सैंपल्स के फॉर्म भरने होते हैं, जिसमें से अगर एक भी इंफॉर्मेशन मिसिंग है, तो फॉर्म आगे नहीं बढ़ता। जहां से सैंपल आया है, वहां फोन करके जानकारी पता करनी होती है। इसके अलावा लाइव वायरस के साथ पूरा टेस्ट कंडक्ट करने में खुद की सुरक्षा का भी पूरा ख्याल रखना होता है। हालांकि फैमिली मेम्बर्स भी डॉक्टर्स हैं, तो सब हमारी जिम्मेदारी को समझते हैं। ऐसे में परिवार और डिपार्टमेंट की तरफ से मिला पूरा सपाेर्ट ही हमारी एनर्जी है, जिससे हम लगातार वॉर फ्रंट की तरह काम पर जुटे हैं।



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